डॉ. भीमराव आम्बेडकर का जीवन और लक्ष्य dr.ambedkar life and missions
डॉ. भीमराव आम्बेडकर का जीवन और लक्ष्य
भारत रत्न डॉ. भीमराव आम्बेडकर एम.ए., पी.एच.डी, कोलम्बिया विश्वविद्यालय डी.एस.सी. लन्दन, एल.एल.डी कोलम्बिया वि.वि. डी.लिट उस्मानिया वि.वि., बार एट लॉ लन्दन, का जन्म दिनंाक-14 अप्रैल सन् 1891 महू छावनी जिला इन्दौर मध्य प्रदेश में हुआ था । इनका परिनिर्वाण निधन 26 अलीपुर रोड नई दिल्ली में दिनांक-6 दिसम्बर सन् 1956 को हुआ था।
कबीर पंथी इनके पिता सूबेदार मेजर रामजी मालोजी व माता श्रीमती भीमा बाई थी । यह 14 भाई बहन में सबसे छोटे थे । इनका प्रथम विवाह 9 वर्षीय रमाबाई के साथ 1906 में तथा द्वितीय विवाह 1948 सविता आम्बेडकर से हुआ था। इनका बचपन डागोली में बीता उसके बाद परिवार सतारा में बस गया । दलित समाज के होने के कारण इन्हें स्कूल में दाखिला प्रारंभ में नही मिला बाद में अंग्रेज सैनिक अधिकारी की सिफारिश पर केम्प स्कूल में दाखला मिला था ।
स्कूल में डॉ.आम्बेडकर को जमीन पर बैठकर पढना पडता था । उन्हें अपने साथ एक टाट पटटी का टुकडा लाना पडता था ताकि इनकी अलग से दलित के रूप में पहचान हो सके । पानी के लिये नल की टोटी वे खुद नहीं खोल सकते थे, उन्हे अन्य स्वर्ण व्यक्ति व्दारा टोटी खोले जाने पर ही पानी पीने मिलता था । उस समय दलित खाना भी स्वर्ण बच्चों के बाद खा सकते थे ।
डॉ. आम्बेडकर को बचपन मंे अछूत पन के अनेक दर्द और दंश झेलने पडे। उन्हंे अछूत होने के कारण बचपन में बैलगाडी से उतार दिया गया , सार्वजनिक कूए से पानी पीने पर जमकर पिटाई की गई । नाई के व्दारा बाल काटने से मना कर दिया गया । नौकरी लगने पर पारसी लोगों के द्वारा मारपीट कर बडौदा में घर से भगा दिया गया। सम्मान प्राप्त होने पर तांगे वाले ने तांगा हाकने से मना कर दिया जिससे उनकी एक टांग टूट गई ।
इन सब दुर्व्यवहारों से इनके स्वाभिमान को ठेंस पहुंची ओैर एक नये भीमराव का जन्म हुआ । जिसने इस समाज से जाति पात को मिटाने और भेदभाव को समाप्त करने का बीड़ा उठाया ।
डॉ. भीमराव के दादा जी मालोजी सकपाल आम्बावडे गांव में रहते थे जिसके कारण लोग उन्हें आम्बावडेकर पुकारा करते थे । जो बाद में बिगडकर आम्बेडकर हो गया। सतारा से डॉ. आम्बेडकर का परिवार बम्बई आकर लोअर परेल की डबल चाल मंे रहने लगा । जहा पर गरीबी और मिटटी के तेल कुप्पी की टिमटिमाती धीमी रोश्नी मंे वे पढाई करते थे
।
बम्बई में मराठा हाई स्कूल में उनका दाखिला हुआ । कुछ समय उनका बम्बई के प्रसिद्ध एल्फिंसटन हाई स्कूल में दाखिला हुआ। जहां उन्हें कदम कदम पर अपमानित किया जाता था । संस्कृत पढने से रोका गया । महार पढकर क्या करेंगे कहा गया । इस अपमान के बीच सन् 1907 में मेट्कि परीक्षा पास की । प्रोफेसर केलुस्कर साहब के दुलारे होने के कारण उन्होंने भीमराव को बडौदा के महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ से मिलवाया था। महाराजा के व्दारा उन्हें 25/-रूपये मासिक छात्रवृति पढाई के लिए दी गई । इसके बाद वे बम्बई के परेल क्षेत्र में इंप्रूवमेंट ट्स्ट चाल नंबर 1 की मंजिल पर कमरा नंबर 50 एंव 51 पर किराये से रहने लगे । सन् 1912 में बी.ए.की परीक्षा पास की थी ।
डॉ. आम्बेडर को महाराजा बडोदा ने सन् 1913 में बडोदा राजा की फौज में लेफटीनेंट के पद पर पदस्थ किया । फौज की नोकरी के दौरान 15 दिन कार्य करने के दौरान छूआ छूत की हीनता के कारण उन्हाने विदेश में शिक्षा पाने के लिये आवेदन दिया । 15-6-1913से 14-6-1915 तक बडोदा राज्य ने उन्हें छात्रवृति दी उसमें यह समझौता हुआ कि 10 वर्ष बडौदा राज्य में नौकरी करेगें ।
जुलाई 1913 में वह अमेरिका न्यूयार्क में शिक्षा के लिये गये । जहां 1915 में एम.ए. परीक्षा पास की उनका शोध का विषय द नेश्नल डिवीडेड आफ इंडिया ए हिस्टोरीकल एंड एनेलिटिकल स्टडी पी.एच.डी. के लिए स्वीकृत हुआ और पैसे की कमी के कारण आठ वर्ष बाद उस विषय पर उन्हें डॉक्ट्ेरट की उपाधी प्रदान की गई ।
सन् 1920 में पुनः यूरोप अध्ययन के लिए गये । जहां पर लन्दन स्कूल ऑफ इक्नामिक्स सांईस में पढाई की । और एल.एल.बी. की परीक्षा पास की।
डॉ. आम्बेडकर ने अपने काफी मुश्किल भरे हालातो में उच्च शिक्षा प्राप्त कि और वर्ण व्यवस्था के शिकार गैर बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था से पीडित लोगो के हितो के लिए विभिन्न स्तर पर कडा संघर्ष किया और अनेको प्रयासो के जरिये उनमें अपने मौलिक अधिकारों के प्रति भावना भी जागृत की ।
डॉ. आम्बेडकर का समस्त जीवन न्याय, समानता व मानवाधिकारों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित एंव चिन्तन पूर्णतः मानवीय मूल्यों पर आधारित रहा है । उन्होने एक व्यक्ति-एक वोट, एक वोट की एक समान कीमत का चुनावी सिद्धांत लागू कराके इस देश के तमाम कमजोर वर्गो के लोगों को राजनीति में भी समुचित भागीदारी का कानूनी अधिकार दिलाया ।
हमारा देश सदियों से व्याप्त वर्ण व जाति पर आधारित गैर-बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था का, सबसे ज्यादा शिकार रहा है । जिनमें अधिकतर अनुसूचित जाति/जनजाति एंव अन्य पिछडे वर्गो के लोग शामिल रहे है और इन वर्गो में समय समय अनेको महान सन्त, गुरू व महापुरूष पैदा हुए, जिन्होंनेे इस गैर-बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था को बदलने व समतामूलक समाज व्यवस्था को स्थापित करने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया तथा काफी कुर्बानियां भी दी है । लेकिन उनमें सबसे महत्वपूर्ण नाम डॉ. भीमराव आम्बेडकर का है ।
डॉ. आम्बेडकर ने महान मानवतावादी गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को अपना आदर्श मानते हुए, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, जात पात का बीज नाश को मूल मंत्र मानते हुए उन्होंने अशिक्षित, शोषित एंव दुखी प्राणियों को महात्मा बुद्ध का रास्ता बताया था कि-अत्तदीपोभव अर्थात् अपना प्रकाश स्वयं बनकर स्वंय उपर उठो और अपने और अपने मार्ग का अन्वेषण स्वयं करो ।
डॉ.भीमराव बाबा साहब आम्बेडकर का मुख्य लक्ष्य यह था कि समाज में जाति वर्ग का भेदभाव न हो, सभी को समान अधिकार मिले उन्हें बराबरी का दर्जा दिया जावे , सामाजिक आर्थिक ,राजनैतिक स्वतंत्रता दी जावे , भाई चारे की रचना हो और अछूत को आत्म निर्णय का अधिकार मिले । इसके लिये सर्व प्रथम उन्होंने पहली कानूनी लडाई सीमन कमेटी के साथ लड़ी । जिसमें उन्होंने मांग की थी कि अछूत समाज के सभी नागरिको को हक मिले
देश का पांचवा हिस्सा अछूत होने के बाद भी वे समाज की मुख्य धारा से कटे हुए थे। अछूतो के लिये मंदिरो मंे प्रवेश की मनाही थी। वे स्कूलों मेे दाखला नहीं ले सकते थे । दलित समाज मन चाहा पेशा नहीं कर सकता था । वह मनचाहा कपडा भी नहीं पहन सकता था।
अछूत सार्वजनिक स्थानो का प्रयाग नहीकर सकता था। तालाव और कुओं से पानी नहीं ले सकता था । किसी जुल्म के खिलाफ नहीं बोल सकता था । दलित समाज को धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्वतंत्रता नहीं थी । वे आर्थिक रूप से वे बंधुआ दास थे । उन्हें शहर के बाहर गंदी वस्तियों में रहना पढता था ।अछूत समाज की परछाई पड जाने मात्र से ही धर्मान्ध लोगो का धर्म भ्रस्ट हो जाता था ।धर्म पुस्तको काछूना ,सुनना व पढना उनको मना था ।वह धर्म उपदेश नहीं कर सकता था ।
आछूतो की ओरते आभषण नहीं पहन सकती थी ।बराबरी का अधिकार उनसे कोस दूर था । छुआछूत जैसे अमानुषिक बर्ताव को सहने के लिये उनका समाज वाध्य था । सरकारी नोकरियो में आना उनके लिये असंभव था ।
डॉ. आम्बेडकर के प्रयास से सभी स्कूलो में अछूत लोगो को दाखिला दिया गया । लेकिन वे स्वर्ण समाज के वच्चों से अलग बैठते थे । सन् 1920 से उन्हें साथ बैठाया जाने के आदेश हुए लेकिन उसका पालन न होने पर 1933 में राउन्ड टेबिल कान्फ्रेन्स की कानूनी जंग डा0 अम्बेडकर व्दारा जीती गई। जिसके कारण 1940 ईसवी से अछूते समाज के लोग का दाखिला स्कूल, कालेज में स्वतंत्रता पूर्वक होने लगा ।
20 जुलाई 1924 में डॉ.आम्बेडकर ने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की थी। जिसका मुख्य उददेश्य दलित समाज में शिक्षा का प्रसार करना, दलित समाज की माली हालत सुधारना , दलित समाज की समस्याओ का प्रतिनिधित्व करना था ।
सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक शोषण के कारण अछूत समाज का जीवन दंुर्भर था । दलित समाज जात पात वाली वयवस्था में असाहय, लाचार, परेशान थे समाजिक अत्याचार व अपमान उनके दैनिक जीवन के अंग थे ,उनकाजीवन आंतकित था । रूढ़ियो प्रथाओं के व्दारा अछूतो को सताया जाता था ।
समाज में चारो तरफ धर्म के नाम पर ठगी, अवतारो के नाम पर लूट, देवी देवताओं के नाम पर डकैती मची हुई थी । अत्याचारो से पीडित करोड़ो लोगो की आंख का आसू पोछने वाला असहाय लचार व अत्याचार को सबक सिखाने वाला उन्हें राहत देने वाला एक मात्र व्यक्ति डा0 आम्बेडकर था ।
डॉ. आम्बेडकर का मिशन था कि मानवीय अधिकारो की स्थापना हो, सामाजिक व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन लाया जाये ताकि दलित का शोषण ,न हो अछूत समाज को एक नाम और पहचान मिले , इसके लिए उन्होने संदेश दिया था कि सामाजिक दास्ता से निपटने के लिये ईश्वर भरोसे न बैठकर अपनी पहचान खुद दलित वर्ग को बनाना चाहिए ।
13-10-1935 को डा0 आम्बेडकर ने महाड की क्रांती की थी, जिसमें हजारो दलितो ने महाड नदी में जाकर स्नान किया था। महाड़ का भेद भाव मिटाया गया । उस नदी का पानी सभी वर्गो के लोगों के साथ जानवर भी पी सकते थे लेकिन दलित समाज के लोग पानी नहीं छू सकते थे जिस पर उन्हाने बल दिया और नदी में एक हजार दलितों ने पानी में प्रवेश कर सदियों से चली आ रही अछूत की बीमारी को अलविदा कह दिया था।
बाबा आम्बेडकर ने जाति वाद के दंश, छूआछूत की बुराई एंव दलितांको मुख्य धारा से जोड़ने के लिये स्थापित वहिष्कृत हितकारणी सभा का मुख्य उददेश्य दलितों को संगठित करने उन्हें शिक्षा प्रदान करने संस्कृति को निर्मित करने उन्हें अंध विश्वास से मुक्त कराने व जमीन प्रदान कराने, उनके द्वारा हाई स्कूल खोले गये थे । छात्रावास की स्थापना की गई । उनके लिये किताबे, कपड़े कापियॉ भोजन की व्यवस्था की गई जिसका खर्च समाज व्दारा वहन किया गया। सभी दलित समाज के विधार्थियों को पढ़ने की शिक्षा के साथ साथ समाज को जागरूप बनाने के लिये एक हाकी क्लब की स्थापना की गई ।
इस प्रकार बाबा आम्बेडकर व्दारा दलित समाज के आर्थिक,समाजिक बोद्धिक विकास हेतु कार्य प्रारंभ किये गये समय समय पर दलित समाज के उत्थान के लिये पत्राचार भी किया गया । इसके बाद 14-7-1928 को वहिष्कृत हितकारणी सभाको समाप्त कर उसके स्थान पर दलित वर्ग एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की थी।
बम्बई में जुलाई 1928 में मैटरनिटी बैैनीफिट बिल के रूप में काम करने महिलाओं को राहत प्रदान करने की जोरदार वकालत की और उसे समस्त भारत में विस्तारित करने की सिफारिश की थी।
शिक्षा के क्षेत्र में दलित समाज तरक्की करे इसके लिये देश में पहली बार सरकारी खजाने से 9000/-रूपये सालाना अनुदान स्वीकार किया गया था । जिससे छात्रावास बनाये गये । धन पर्याप्त न होने के कारण समाज के अन्य वर्ग से धन की अपील की गई थी ।
डॉ. आम्बेडकर अछूत समाज की शैक्षणिक, आर्थिक अध्ययन करने वाली समीति के वे सदस्य थे । 18 अक्टूबर 1930 को राउन्ड टेविल कान्फ्रेन्स के लिये वे लंदन गये थे । जहां पर उन्होने निर्भिकता से अपनी बात रखी ओैर सबसे पहले दलित समाज के धार्मिक व सास्कृतिक, राजनैतिक अधिकारों की सुरक्षा के लिये मौलिक अधिकार प्रदान करवाये। उनके प्रयास से पुलिस विभाग में भी अछूत समाज की भर्ती प्रंारभ की गई ।
जुलाई 1923 में गोल मेज सम्मेलन में डा0 आम्बेडकर को सेंट्र्ल स्ट््ेक्चर सामीती का सदस्य बनाया जिसमें उन्हाने मांग की थी कि दलित वर्ग को सरकारी नौकरी में मिलेट्ी विभाग में भर्ती की अनुमति दी जावे, पंजाब मे भूमि सुधार कानून लागू हो, गवनर्र जनरल को अधिकार का उल्लंघन होने पर अपील दलित समाज कर सके । इसके बाद उन्हें जस्टिस ऑफ पीस के रूप में जाने जाना लगा ।
1928 मंे साईमन कमीशन भारत आया उसके सदस्य डा0 आम्बेडकर थे, अछूत समाज की शैक्षणिक आर्थिक ,सामाजिक स्थिति का अध्यन करने बनी स्त्रे कमेटी के वे सदस्य थे । डा0 आम्बेडकर ने 1917 से 1957 तक लगातार अछूत समाज के अधिकारो के लिये लड़ाई करी जिसके कारण वे मुस्लिम, दलित ,ईसाई व एंग्लो इण्डियन समाज को अधिकार दिला सके ।
1932 में मैनपाइस कमीशन में उनकी यह बात स्वीकार की गई थी कि दलित समाज को मोलिक अधिकार से रोकने पर उसका बहिष्कार करने पर भा0 दं0वि0 में दंडित किया जावेगा ।
जब गांधी के व्दारा 1932 में दलितो को मिलने वाले पृथक निर्वाचन का विरोध कर आमरण अनशन की घोषणा की तो दिनाक 24-11-32 को डा0 आम्बेडर और गांधी के बीच पूना पैक्ट हुआ, जिसमें संयुक्त मतदान के साथ पृथक निर्वाचन की बात स्वीकार की गई ।
संयुक्त कमेटी के सम्मेलन में 24 अक्टूबर 1933 को चर्चिल को वाक युद्व में परास्त किये जाने के बाद भारतीय सेना पर पुस्तक लिखी और पहली बार अछूत समाज को वोट का हक दिलवाया । उनके द्वारा अछूत समाज को मार्शल की संज्ञा दिलवाकर लाखों संख्या में उन्हें फौज में भर्ती करवाया।
डॉ.आम्बेडकर ने 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की थी, जिसने 1937 मुंबई चुनाव में 13 आरक्षित में से 11 और 4 सामान्य सीटों में से 3 के लिए चुनाव लडा गया था ।
20 जुलाई 1942 को उन्हें एक्जूक्टिव कांउसिल में लेबर मेम्बर का चार्ज दिया गया। उनकी पहल पर रोजगार कार्यालय की स्थापना हुई । मजदूरो के हितों के लिये कारखाने मेंकाम करने की दशा, मजदूरो को वेतन अवकाश के दिन का भी दिलवाया । मजदूरो के रहने की दशा संबधी कानून बनवाये , न्यूनतम वेतन की पहल की।
अपने जीवन काल में हजारो शोध पत्र प्रकाशित किये । दिनांक 3-8-1947 को भारत के प्रथम कानून मंत्री बने । दिनांक 29-8-47 को मसोैद़ा कमेटी का अध्यक्ष बनाये गये । वे हिन्दू कोर्ट बिल के वे जनक हैं । स्वंत्रता समानता और भाईचारा उनका लक्ष्य था। उन्होने थोर्ट आफ पाकिस्तान , एनिहिलेशन आफ कास्ट जैसे महत्वपूर्ण सैकड़ों ग्रंथो की रचना की थी।
1917 से आम्बेडकर युग प्रारंभ हुआ जो लगातार 40 साल 1957 तक चला, अछूतो के संबंध में एक शोध प्रबंध में डा0 आम्बेडकर ने माना था कि हिन्दुओ और अछूतो के बीच कोई नस्ल भिन्नता नहीं है , अछूतपन अपवित्रता से अलग है । अस्पृश्यता पेशे पर आधारित नही है । इसलिये नस्ल भेद नहीं है ।
उनका अभिमत था कि हिन्दुओं और अछूतो के बीच जो भेदभाव है वह मूल रूप से जन-जातियों और छितरे हुए लोगो के बीच था छितरे लोग बाद में अछूत हो गये छितरे लोग हिन्दुओं से अलग हो गये क्योकि उन्होने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया इसलिये वे ब्राम्हणो के कोपभाजक बने । उनके द्वारा लगातार गौ मास ग्रहण करने से अस्पर्शयता पैदा हुई। इस प्रकार अछूतपन अपवित्रता से भिन्न है । अछूत 400 ईसवी के बाद अस्तित्व में आये जब कि अपवित्र वर्ग धर्मसूत्रों के समय अस्तित्व में आये ।
बाबा आम्बेडकर ने महाण की क्रांति से समता युग की स्थापना की ,जाति विहीन वर्ग विहीन समाज की रचना की । शोषित पीड़ित उपेक्षित वर्ग के उत्थान के लिये कार्य किया । इन्डिपेन्डेट लेबर पार्टी बनाई जिसमें जातिवाद पर भेदभाव नहीं था।यही कारण है कि उन्हें आधुनिक बौद्ध, मुक्तिदाता, दलितो का मसीहा, संविधान निर्माता, अर्थशास्त्री, बौद्धिसत्व, आदि नामो से संबोधित किया जाता है।
डॉ0 आम्बेडकर ने हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए कार्य किया । विधवा के पुनर्विवाह, हिन्दू नारी को सम्पत्ति में अधिकार, की वकालत की और बाल विवाह, सती प्रथा, महिलाओ के दुराचार, की घोर आलोचना की । महिलाओ के उत्पीडन के खिलाफ आवाज उठाई ।
डा0 आम्बेडकर ने मूकसार बहिष्कृत भारत ,समता जैसे पत्र निकाले और कलम की धार का प्रयोग अछूतो के उत्थान के लिये किया । उन्हे लडने की ताकत किताबों से मिलती थी । उनकी लायब्रेरी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लायब्रेरियो में से एक थी । वे नौ भाषा हिन्दी, अंग्रेजी, सस्ंकृत, फ्रेन्च ,जर्मन, मद्रासी, गुजराती, उर्दू एवं पार्सीयन के ज्ञाता थे। वे चलते फिरते विश्व ज्ञान कोष थे।
डॉ0आम्बेडकर अपने आप को हिन्दू कहते थे । लेकिन हिन्दू धर्म के लोगों के तंगाने से पीडित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म सन् 1956 में नागपूर में ग्रहण किया था और लाखों दलितो का धर्मान्तरण बौद्ध धर्म में करवाया था । उनके द्वारा पूरे जीवन में बौद्ध शिक्षा का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया । बौद्ध शिक्षा को वे कानूनी रूप से लागू कराना चाहते थे, इसलिये बौद्ध सिद्धंातो के अनुरूप कानूनी व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन की सिफारिश की थी ।
एक बुद्धिमान व्यक्ति ,जो कार्य दस जन्म नहीं कर सकता था, वह कार्य संविधान के सूत्रकार डा0 आम्बेडकर के व्दारा एक जन्म में किया गया। यही कारण हे कि दुनिया आज उन्हें महारात्मा गांधी ,महान अकबर, ग्रेट अशोक जैसे महान भारतियों के साथ गिनती है । अपने जीवन का जो उन्होने लक्ष्य रखा । उसे उन्होने प्राप्त किया । यहीं कारण है कि आज अछूत समाज की मुख्य धारा से जुड़े हुए है । सन् 2012 में हुये एक प्रायवेट टी0व्ही0 चेनल के सर्वे में महात्मा गांधी के साथ डा0 आम्बेडकर को दूसरा महान भारतीय माना गया है।
भारत रत्न डॉ. भीमराव आम्बेडकर एम.ए., पी.एच.डी, कोलम्बिया विश्वविद्यालय डी.एस.सी. लन्दन, एल.एल.डी कोलम्बिया वि.वि. डी.लिट उस्मानिया वि.वि., बार एट लॉ लन्दन, का जन्म दिनंाक-14 अप्रैल सन् 1891 महू छावनी जिला इन्दौर मध्य प्रदेश में हुआ था । इनका परिनिर्वाण निधन 26 अलीपुर रोड नई दिल्ली में दिनांक-6 दिसम्बर सन् 1956 को हुआ था।
कबीर पंथी इनके पिता सूबेदार मेजर रामजी मालोजी व माता श्रीमती भीमा बाई थी । यह 14 भाई बहन में सबसे छोटे थे । इनका प्रथम विवाह 9 वर्षीय रमाबाई के साथ 1906 में तथा द्वितीय विवाह 1948 सविता आम्बेडकर से हुआ था। इनका बचपन डागोली में बीता उसके बाद परिवार सतारा में बस गया । दलित समाज के होने के कारण इन्हें स्कूल में दाखिला प्रारंभ में नही मिला बाद में अंग्रेज सैनिक अधिकारी की सिफारिश पर केम्प स्कूल में दाखला मिला था ।
स्कूल में डॉ.आम्बेडकर को जमीन पर बैठकर पढना पडता था । उन्हें अपने साथ एक टाट पटटी का टुकडा लाना पडता था ताकि इनकी अलग से दलित के रूप में पहचान हो सके । पानी के लिये नल की टोटी वे खुद नहीं खोल सकते थे, उन्हे अन्य स्वर्ण व्यक्ति व्दारा टोटी खोले जाने पर ही पानी पीने मिलता था । उस समय दलित खाना भी स्वर्ण बच्चों के बाद खा सकते थे ।
डॉ. आम्बेडकर को बचपन मंे अछूत पन के अनेक दर्द और दंश झेलने पडे। उन्हंे अछूत होने के कारण बचपन में बैलगाडी से उतार दिया गया , सार्वजनिक कूए से पानी पीने पर जमकर पिटाई की गई । नाई के व्दारा बाल काटने से मना कर दिया गया । नौकरी लगने पर पारसी लोगों के द्वारा मारपीट कर बडौदा में घर से भगा दिया गया। सम्मान प्राप्त होने पर तांगे वाले ने तांगा हाकने से मना कर दिया जिससे उनकी एक टांग टूट गई ।
इन सब दुर्व्यवहारों से इनके स्वाभिमान को ठेंस पहुंची ओैर एक नये भीमराव का जन्म हुआ । जिसने इस समाज से जाति पात को मिटाने और भेदभाव को समाप्त करने का बीड़ा उठाया ।
डॉ. भीमराव के दादा जी मालोजी सकपाल आम्बावडे गांव में रहते थे जिसके कारण लोग उन्हें आम्बावडेकर पुकारा करते थे । जो बाद में बिगडकर आम्बेडकर हो गया। सतारा से डॉ. आम्बेडकर का परिवार बम्बई आकर लोअर परेल की डबल चाल मंे रहने लगा । जहा पर गरीबी और मिटटी के तेल कुप्पी की टिमटिमाती धीमी रोश्नी मंे वे पढाई करते थे
।
बम्बई में मराठा हाई स्कूल में उनका दाखिला हुआ । कुछ समय उनका बम्बई के प्रसिद्ध एल्फिंसटन हाई स्कूल में दाखिला हुआ। जहां उन्हें कदम कदम पर अपमानित किया जाता था । संस्कृत पढने से रोका गया । महार पढकर क्या करेंगे कहा गया । इस अपमान के बीच सन् 1907 में मेट्कि परीक्षा पास की । प्रोफेसर केलुस्कर साहब के दुलारे होने के कारण उन्होंने भीमराव को बडौदा के महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ से मिलवाया था। महाराजा के व्दारा उन्हें 25/-रूपये मासिक छात्रवृति पढाई के लिए दी गई । इसके बाद वे बम्बई के परेल क्षेत्र में इंप्रूवमेंट ट्स्ट चाल नंबर 1 की मंजिल पर कमरा नंबर 50 एंव 51 पर किराये से रहने लगे । सन् 1912 में बी.ए.की परीक्षा पास की थी ।
डॉ. आम्बेडर को महाराजा बडोदा ने सन् 1913 में बडोदा राजा की फौज में लेफटीनेंट के पद पर पदस्थ किया । फौज की नोकरी के दौरान 15 दिन कार्य करने के दौरान छूआ छूत की हीनता के कारण उन्हाने विदेश में शिक्षा पाने के लिये आवेदन दिया । 15-6-1913से 14-6-1915 तक बडोदा राज्य ने उन्हें छात्रवृति दी उसमें यह समझौता हुआ कि 10 वर्ष बडौदा राज्य में नौकरी करेगें ।
जुलाई 1913 में वह अमेरिका न्यूयार्क में शिक्षा के लिये गये । जहां 1915 में एम.ए. परीक्षा पास की उनका शोध का विषय द नेश्नल डिवीडेड आफ इंडिया ए हिस्टोरीकल एंड एनेलिटिकल स्टडी पी.एच.डी. के लिए स्वीकृत हुआ और पैसे की कमी के कारण आठ वर्ष बाद उस विषय पर उन्हें डॉक्ट्ेरट की उपाधी प्रदान की गई ।
सन् 1920 में पुनः यूरोप अध्ययन के लिए गये । जहां पर लन्दन स्कूल ऑफ इक्नामिक्स सांईस में पढाई की । और एल.एल.बी. की परीक्षा पास की।
डॉ. आम्बेडकर ने अपने काफी मुश्किल भरे हालातो में उच्च शिक्षा प्राप्त कि और वर्ण व्यवस्था के शिकार गैर बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था से पीडित लोगो के हितो के लिए विभिन्न स्तर पर कडा संघर्ष किया और अनेको प्रयासो के जरिये उनमें अपने मौलिक अधिकारों के प्रति भावना भी जागृत की ।
डॉ. आम्बेडकर का समस्त जीवन न्याय, समानता व मानवाधिकारों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित एंव चिन्तन पूर्णतः मानवीय मूल्यों पर आधारित रहा है । उन्होने एक व्यक्ति-एक वोट, एक वोट की एक समान कीमत का चुनावी सिद्धांत लागू कराके इस देश के तमाम कमजोर वर्गो के लोगों को राजनीति में भी समुचित भागीदारी का कानूनी अधिकार दिलाया ।
हमारा देश सदियों से व्याप्त वर्ण व जाति पर आधारित गैर-बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था का, सबसे ज्यादा शिकार रहा है । जिनमें अधिकतर अनुसूचित जाति/जनजाति एंव अन्य पिछडे वर्गो के लोग शामिल रहे है और इन वर्गो में समय समय अनेको महान सन्त, गुरू व महापुरूष पैदा हुए, जिन्होंनेे इस गैर-बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था को बदलने व समतामूलक समाज व्यवस्था को स्थापित करने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया तथा काफी कुर्बानियां भी दी है । लेकिन उनमें सबसे महत्वपूर्ण नाम डॉ. भीमराव आम्बेडकर का है ।
डॉ. आम्बेडकर ने महान मानवतावादी गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को अपना आदर्श मानते हुए, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, जात पात का बीज नाश को मूल मंत्र मानते हुए उन्होंने अशिक्षित, शोषित एंव दुखी प्राणियों को महात्मा बुद्ध का रास्ता बताया था कि-अत्तदीपोभव अर्थात् अपना प्रकाश स्वयं बनकर स्वंय उपर उठो और अपने और अपने मार्ग का अन्वेषण स्वयं करो ।
डॉ.भीमराव बाबा साहब आम्बेडकर का मुख्य लक्ष्य यह था कि समाज में जाति वर्ग का भेदभाव न हो, सभी को समान अधिकार मिले उन्हें बराबरी का दर्जा दिया जावे , सामाजिक आर्थिक ,राजनैतिक स्वतंत्रता दी जावे , भाई चारे की रचना हो और अछूत को आत्म निर्णय का अधिकार मिले । इसके लिये सर्व प्रथम उन्होंने पहली कानूनी लडाई सीमन कमेटी के साथ लड़ी । जिसमें उन्होंने मांग की थी कि अछूत समाज के सभी नागरिको को हक मिले
देश का पांचवा हिस्सा अछूत होने के बाद भी वे समाज की मुख्य धारा से कटे हुए थे। अछूतो के लिये मंदिरो मंे प्रवेश की मनाही थी। वे स्कूलों मेे दाखला नहीं ले सकते थे । दलित समाज मन चाहा पेशा नहीं कर सकता था । वह मनचाहा कपडा भी नहीं पहन सकता था।
अछूत सार्वजनिक स्थानो का प्रयाग नहीकर सकता था। तालाव और कुओं से पानी नहीं ले सकता था । किसी जुल्म के खिलाफ नहीं बोल सकता था । दलित समाज को धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्वतंत्रता नहीं थी । वे आर्थिक रूप से वे बंधुआ दास थे । उन्हें शहर के बाहर गंदी वस्तियों में रहना पढता था ।अछूत समाज की परछाई पड जाने मात्र से ही धर्मान्ध लोगो का धर्म भ्रस्ट हो जाता था ।धर्म पुस्तको काछूना ,सुनना व पढना उनको मना था ।वह धर्म उपदेश नहीं कर सकता था ।
आछूतो की ओरते आभषण नहीं पहन सकती थी ।बराबरी का अधिकार उनसे कोस दूर था । छुआछूत जैसे अमानुषिक बर्ताव को सहने के लिये उनका समाज वाध्य था । सरकारी नोकरियो में आना उनके लिये असंभव था ।
डॉ. आम्बेडकर के प्रयास से सभी स्कूलो में अछूत लोगो को दाखिला दिया गया । लेकिन वे स्वर्ण समाज के वच्चों से अलग बैठते थे । सन् 1920 से उन्हें साथ बैठाया जाने के आदेश हुए लेकिन उसका पालन न होने पर 1933 में राउन्ड टेबिल कान्फ्रेन्स की कानूनी जंग डा0 अम्बेडकर व्दारा जीती गई। जिसके कारण 1940 ईसवी से अछूते समाज के लोग का दाखिला स्कूल, कालेज में स्वतंत्रता पूर्वक होने लगा ।
20 जुलाई 1924 में डॉ.आम्बेडकर ने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की थी। जिसका मुख्य उददेश्य दलित समाज में शिक्षा का प्रसार करना, दलित समाज की माली हालत सुधारना , दलित समाज की समस्याओ का प्रतिनिधित्व करना था ।
सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक शोषण के कारण अछूत समाज का जीवन दंुर्भर था । दलित समाज जात पात वाली वयवस्था में असाहय, लाचार, परेशान थे समाजिक अत्याचार व अपमान उनके दैनिक जीवन के अंग थे ,उनकाजीवन आंतकित था । रूढ़ियो प्रथाओं के व्दारा अछूतो को सताया जाता था ।
समाज में चारो तरफ धर्म के नाम पर ठगी, अवतारो के नाम पर लूट, देवी देवताओं के नाम पर डकैती मची हुई थी । अत्याचारो से पीडित करोड़ो लोगो की आंख का आसू पोछने वाला असहाय लचार व अत्याचार को सबक सिखाने वाला उन्हें राहत देने वाला एक मात्र व्यक्ति डा0 आम्बेडकर था ।
डॉ. आम्बेडकर का मिशन था कि मानवीय अधिकारो की स्थापना हो, सामाजिक व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन लाया जाये ताकि दलित का शोषण ,न हो अछूत समाज को एक नाम और पहचान मिले , इसके लिए उन्होने संदेश दिया था कि सामाजिक दास्ता से निपटने के लिये ईश्वर भरोसे न बैठकर अपनी पहचान खुद दलित वर्ग को बनाना चाहिए ।
13-10-1935 को डा0 आम्बेडकर ने महाड की क्रांती की थी, जिसमें हजारो दलितो ने महाड नदी में जाकर स्नान किया था। महाड़ का भेद भाव मिटाया गया । उस नदी का पानी सभी वर्गो के लोगों के साथ जानवर भी पी सकते थे लेकिन दलित समाज के लोग पानी नहीं छू सकते थे जिस पर उन्हाने बल दिया और नदी में एक हजार दलितों ने पानी में प्रवेश कर सदियों से चली आ रही अछूत की बीमारी को अलविदा कह दिया था।
बाबा आम्बेडकर ने जाति वाद के दंश, छूआछूत की बुराई एंव दलितांको मुख्य धारा से जोड़ने के लिये स्थापित वहिष्कृत हितकारणी सभा का मुख्य उददेश्य दलितों को संगठित करने उन्हें शिक्षा प्रदान करने संस्कृति को निर्मित करने उन्हें अंध विश्वास से मुक्त कराने व जमीन प्रदान कराने, उनके द्वारा हाई स्कूल खोले गये थे । छात्रावास की स्थापना की गई । उनके लिये किताबे, कपड़े कापियॉ भोजन की व्यवस्था की गई जिसका खर्च समाज व्दारा वहन किया गया। सभी दलित समाज के विधार्थियों को पढ़ने की शिक्षा के साथ साथ समाज को जागरूप बनाने के लिये एक हाकी क्लब की स्थापना की गई ।
इस प्रकार बाबा आम्बेडकर व्दारा दलित समाज के आर्थिक,समाजिक बोद्धिक विकास हेतु कार्य प्रारंभ किये गये समय समय पर दलित समाज के उत्थान के लिये पत्राचार भी किया गया । इसके बाद 14-7-1928 को वहिष्कृत हितकारणी सभाको समाप्त कर उसके स्थान पर दलित वर्ग एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की थी।
बम्बई में जुलाई 1928 में मैटरनिटी बैैनीफिट बिल के रूप में काम करने महिलाओं को राहत प्रदान करने की जोरदार वकालत की और उसे समस्त भारत में विस्तारित करने की सिफारिश की थी।
शिक्षा के क्षेत्र में दलित समाज तरक्की करे इसके लिये देश में पहली बार सरकारी खजाने से 9000/-रूपये सालाना अनुदान स्वीकार किया गया था । जिससे छात्रावास बनाये गये । धन पर्याप्त न होने के कारण समाज के अन्य वर्ग से धन की अपील की गई थी ।
डॉ. आम्बेडकर अछूत समाज की शैक्षणिक, आर्थिक अध्ययन करने वाली समीति के वे सदस्य थे । 18 अक्टूबर 1930 को राउन्ड टेविल कान्फ्रेन्स के लिये वे लंदन गये थे । जहां पर उन्होने निर्भिकता से अपनी बात रखी ओैर सबसे पहले दलित समाज के धार्मिक व सास्कृतिक, राजनैतिक अधिकारों की सुरक्षा के लिये मौलिक अधिकार प्रदान करवाये। उनके प्रयास से पुलिस विभाग में भी अछूत समाज की भर्ती प्रंारभ की गई ।
जुलाई 1923 में गोल मेज सम्मेलन में डा0 आम्बेडकर को सेंट्र्ल स्ट््ेक्चर सामीती का सदस्य बनाया जिसमें उन्हाने मांग की थी कि दलित वर्ग को सरकारी नौकरी में मिलेट्ी विभाग में भर्ती की अनुमति दी जावे, पंजाब मे भूमि सुधार कानून लागू हो, गवनर्र जनरल को अधिकार का उल्लंघन होने पर अपील दलित समाज कर सके । इसके बाद उन्हें जस्टिस ऑफ पीस के रूप में जाने जाना लगा ।
1928 मंे साईमन कमीशन भारत आया उसके सदस्य डा0 आम्बेडकर थे, अछूत समाज की शैक्षणिक आर्थिक ,सामाजिक स्थिति का अध्यन करने बनी स्त्रे कमेटी के वे सदस्य थे । डा0 आम्बेडकर ने 1917 से 1957 तक लगातार अछूत समाज के अधिकारो के लिये लड़ाई करी जिसके कारण वे मुस्लिम, दलित ,ईसाई व एंग्लो इण्डियन समाज को अधिकार दिला सके ।
1932 में मैनपाइस कमीशन में उनकी यह बात स्वीकार की गई थी कि दलित समाज को मोलिक अधिकार से रोकने पर उसका बहिष्कार करने पर भा0 दं0वि0 में दंडित किया जावेगा ।
जब गांधी के व्दारा 1932 में दलितो को मिलने वाले पृथक निर्वाचन का विरोध कर आमरण अनशन की घोषणा की तो दिनाक 24-11-32 को डा0 आम्बेडर और गांधी के बीच पूना पैक्ट हुआ, जिसमें संयुक्त मतदान के साथ पृथक निर्वाचन की बात स्वीकार की गई ।
संयुक्त कमेटी के सम्मेलन में 24 अक्टूबर 1933 को चर्चिल को वाक युद्व में परास्त किये जाने के बाद भारतीय सेना पर पुस्तक लिखी और पहली बार अछूत समाज को वोट का हक दिलवाया । उनके द्वारा अछूत समाज को मार्शल की संज्ञा दिलवाकर लाखों संख्या में उन्हें फौज में भर्ती करवाया।
डॉ.आम्बेडकर ने 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की थी, जिसने 1937 मुंबई चुनाव में 13 आरक्षित में से 11 और 4 सामान्य सीटों में से 3 के लिए चुनाव लडा गया था ।
20 जुलाई 1942 को उन्हें एक्जूक्टिव कांउसिल में लेबर मेम्बर का चार्ज दिया गया। उनकी पहल पर रोजगार कार्यालय की स्थापना हुई । मजदूरो के हितों के लिये कारखाने मेंकाम करने की दशा, मजदूरो को वेतन अवकाश के दिन का भी दिलवाया । मजदूरो के रहने की दशा संबधी कानून बनवाये , न्यूनतम वेतन की पहल की।
अपने जीवन काल में हजारो शोध पत्र प्रकाशित किये । दिनांक 3-8-1947 को भारत के प्रथम कानून मंत्री बने । दिनांक 29-8-47 को मसोैद़ा कमेटी का अध्यक्ष बनाये गये । वे हिन्दू कोर्ट बिल के वे जनक हैं । स्वंत्रता समानता और भाईचारा उनका लक्ष्य था। उन्होने थोर्ट आफ पाकिस्तान , एनिहिलेशन आफ कास्ट जैसे महत्वपूर्ण सैकड़ों ग्रंथो की रचना की थी।
1917 से आम्बेडकर युग प्रारंभ हुआ जो लगातार 40 साल 1957 तक चला, अछूतो के संबंध में एक शोध प्रबंध में डा0 आम्बेडकर ने माना था कि हिन्दुओ और अछूतो के बीच कोई नस्ल भिन्नता नहीं है , अछूतपन अपवित्रता से अलग है । अस्पृश्यता पेशे पर आधारित नही है । इसलिये नस्ल भेद नहीं है ।
उनका अभिमत था कि हिन्दुओं और अछूतो के बीच जो भेदभाव है वह मूल रूप से जन-जातियों और छितरे हुए लोगो के बीच था छितरे लोग बाद में अछूत हो गये छितरे लोग हिन्दुओं से अलग हो गये क्योकि उन्होने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया इसलिये वे ब्राम्हणो के कोपभाजक बने । उनके द्वारा लगातार गौ मास ग्रहण करने से अस्पर्शयता पैदा हुई। इस प्रकार अछूतपन अपवित्रता से भिन्न है । अछूत 400 ईसवी के बाद अस्तित्व में आये जब कि अपवित्र वर्ग धर्मसूत्रों के समय अस्तित्व में आये ।
बाबा आम्बेडकर ने महाण की क्रांति से समता युग की स्थापना की ,जाति विहीन वर्ग विहीन समाज की रचना की । शोषित पीड़ित उपेक्षित वर्ग के उत्थान के लिये कार्य किया । इन्डिपेन्डेट लेबर पार्टी बनाई जिसमें जातिवाद पर भेदभाव नहीं था।यही कारण है कि उन्हें आधुनिक बौद्ध, मुक्तिदाता, दलितो का मसीहा, संविधान निर्माता, अर्थशास्त्री, बौद्धिसत्व, आदि नामो से संबोधित किया जाता है।
डॉ0 आम्बेडकर ने हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए कार्य किया । विधवा के पुनर्विवाह, हिन्दू नारी को सम्पत्ति में अधिकार, की वकालत की और बाल विवाह, सती प्रथा, महिलाओ के दुराचार, की घोर आलोचना की । महिलाओ के उत्पीडन के खिलाफ आवाज उठाई ।
डा0 आम्बेडकर ने मूकसार बहिष्कृत भारत ,समता जैसे पत्र निकाले और कलम की धार का प्रयोग अछूतो के उत्थान के लिये किया । उन्हे लडने की ताकत किताबों से मिलती थी । उनकी लायब्रेरी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ लायब्रेरियो में से एक थी । वे नौ भाषा हिन्दी, अंग्रेजी, सस्ंकृत, फ्रेन्च ,जर्मन, मद्रासी, गुजराती, उर्दू एवं पार्सीयन के ज्ञाता थे। वे चलते फिरते विश्व ज्ञान कोष थे।
डॉ0आम्बेडकर अपने आप को हिन्दू कहते थे । लेकिन हिन्दू धर्म के लोगों के तंगाने से पीडित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म सन् 1956 में नागपूर में ग्रहण किया था और लाखों दलितो का धर्मान्तरण बौद्ध धर्म में करवाया था । उनके द्वारा पूरे जीवन में बौद्ध शिक्षा का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया । बौद्ध शिक्षा को वे कानूनी रूप से लागू कराना चाहते थे, इसलिये बौद्ध सिद्धंातो के अनुरूप कानूनी व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन की सिफारिश की थी ।
एक बुद्धिमान व्यक्ति ,जो कार्य दस जन्म नहीं कर सकता था, वह कार्य संविधान के सूत्रकार डा0 आम्बेडकर के व्दारा एक जन्म में किया गया। यही कारण हे कि दुनिया आज उन्हें महारात्मा गांधी ,महान अकबर, ग्रेट अशोक जैसे महान भारतियों के साथ गिनती है । अपने जीवन का जो उन्होने लक्ष्य रखा । उसे उन्होने प्राप्त किया । यहीं कारण है कि आज अछूत समाज की मुख्य धारा से जुड़े हुए है । सन् 2012 में हुये एक प्रायवेट टी0व्ही0 चेनल के सर्वे में महात्मा गांधी के साथ डा0 आम्बेडकर को दूसरा महान भारतीय माना गया है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें