सामाजिक न्याय ayushigupta

सामाजिक न्याय सर्व प्रथम स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे सामने सबसे महत्वपूर्ण कार्य एक ऐसे संविधान की रचना करना था जिसके माध्यम से उन उददेश्यों को प्राप्त कर सके जिसके लिए हमने आजादी की लडाई लडी थी और लाखो लोगो की कुरबानी देकर स्वतंत्रता प्राप्त की थी । हमारा देश छोटी-छोटी रियासतो में बटंा हुआ था । स्वतंत्रता के बाद सभी राजा महाराज रियासत स्वतंत्र हो गई थी और उन्हें एकत्र करना महत्वपूर्ण उद्देश्य था। इसके लिए देश में एक संगठित कानून होना आवश्यक था ।

सर्व प्रथम संविधान निर्माण के लिए कैबिनेट-योजना के अंतर्गत नवम्बर 1946 को संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव किया गया । कुल 296 सदस्यों में से 211 सदस्य कांग्रेस के चुने गये और 73 मुस्लिम लीग के तथा शेष स्थान खाली रहे । संविधान सभा के प्रमुख सदस्य में जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सरकार पटेल, मौलाना आजाद, गोपाल स्वामी आयंगर, गोविन्द बल्लभ पन्त, अब्दुल गफफार खां, टी.टी.कृष्णामाचारी, अल्लादी कृष्णास्वामी अययर, हृदयनाथ कंुजरू, सर एच.एस. गौड़, के.टी.शाह, मसानी, आचार्य कृपालानी, डाॅ. अम्बेडकर आदि थे ।

संविधान बनाने के लिए जब संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई तो उसके सामने सर्व प्रथम केबिनेट योजना के द्वारा लगाई गई अनेक चुनौतियां थी । दूसरी ओर मुस्लिम लीग ने बहिस्कार किया था । इन सबसे विचलित हुए बिना हमारे संविधान निर्माता अपने कर्तव्य पथ पर साहस और निश्चय के साथ अडे रहें ।

3 जून 1947 को निर्णय हो जाने के बाद अगस्त 1947 में स्वतंत्रता अधिनियम पारित हुआ और वे सभी परिसीमाएं समाप्त हो गई । जो कैबिनेट प्रतिनिधि मण्डल द्वारा संविधान सभा पर लगाई गई थी । 1947 के अधिनियम के बाद संविधान सभा एक सम्प्रभु निकाय बन गयी और वह भारत के लिए जैसा भी चाहे संविधान बना सकती थी ।

संविधान सभा के अध्यक्ष डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद चुने गये । प्रारूप समिति का काम डाॅ. भीम राव अम्बेडकर को सौंपा गया । संविधान के प्ररूप पर 8 महीने बहस हुई और इस दौरान उसमें भी अनेक संशोधन किये गये । संविधान सभा के 11 अधिवेशन हुए । इस प्रकार संविधान सभा ने कुल मिलाकर 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन के अथक और निरंतर परिश्रम के पश्चात 26 नवम्बर 1949 तक संविधान के निर्माण का कार्य पूरा कर लिया । संविधान के कुछ उपबंधों तो उसी दिन अर्थात 26 नवम्बर 1949 को लागू किया गया शेष उपबंध 26 जनवरी 1950 को प्रवृत हुए जिसे संविधान के प्रवर्तन की तारीख कहा जाता है।


बाबा भीम राव अम्बेडर ने संविधान निर्माण मे अमूल्य योगदान दिया है और यही कारण है कि उन्हें भारत के संविधान का निर्माता कहा जाता है और भारत का संविधान उनकी अमर कृति मानी जाती है। बाबा अम्बेडकर ने अपने जीवनकाल में अनेक पुस्तिके लिखी है परन्तु उन्हे दुनिया भारत के संविधान के निर्माता के रूप में ही जानती पहचानती हैं ।
दलित वर्ग से संबंधित होने के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त बाबा अम्बेडकर ने दलितो के कल्याण के लिए संविधान में अनेक प्रावधान की वकालत की है तथा संविधान के उददेशिका से ही उसके प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथ-निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को -सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट् की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस सविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 को एतत् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधि नियमित और आत्मार्पित किया ग हैं ।

बहुजन हिताए बहुजन सुखाए तथा वासुदेव कुटुम्बुन्धम की भारतीय अवधारणा को संविधान का आधारभूत लक्ष्य बनाया गया है । सामाजिक न्याय कीअवधारणा को बल दिया गया है । पद और अवसर की सामानता प्रदान की गई है।
भारत का संविधान देश की सर्वोच्च विधि है और यह सभी विधियों का आधार और स्त्रोत है । कोई भी विधि संविधान के उपबंधों का अतिलंघन, अति क्रमण, उल्लंघन करने की दशा में असंवैधानिक मानी जाती है । इसलिए संविधान में धारा का उल्लेख न करके अनुच्छेद का उल्लेख किया गया है ।

बाबा अॅम्बेडकर का उददेश्य था कि भारत के संविधान में समानता , और न्याय के आदर्शो की प्रतिष्ठित है । ऐसी समानता और न्याय की स्थापना का प्रयास राजनैनिक, सामाजिक और आर्थिक सभी क्षेत्रों में किया गया है । इसलिए संविधान धर्म, मूलवंश, जाति या जन्म स्थान के आधार पर व्यक्तियों के किसी वग्र में भेद भाव का प्रतिषेध करता है ।
इस आदर्श की प्राप्ति के उददेश्यों से ही इसने धर्म के आधार पर साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व या विधानमण्डलों या सरकारी नौकरियों के लिए पदो के लिए देश के समाजिक और आर्थिक रूप से पिछडे वर्गो के लिए समुचित उपबंध किया है क्यों कि वे जानते थे कि जब तक इन वर्गो को प्रारम्भ में सहयता न दी जायेगी, देश के विकास की गति अवरूद्ध हो जायेगी।
प्रजातांत्रिक समानता के आदर्श केवल तभी साकार हो सकते है जब कि देश के समस्त वर्गो को एक स्तर पर लाया जाय । इसलिए हमारे संविधान में पिछे वर्गो को देश के अन्य वर्गो के स्तर पर लाने के लिए कुछ अस्थाई प्रावधान की भी व्यवस्था है ताकि बहुसंख्यक वर्ग अल्पसंख्यकों पर अत्याचार न कर सकें ।


अनुच्छेद 46 राज्य को जनता के दुर्बलतर और विशेषतया अनुसूचित जातियों के शिक्षा तथा आर्थिक हितों की विशेष सावधानी से उन्नति करने तथा सब प्रकार के शोषण से उनका संरक्षण करने का निदेश देता है ।
भारत के संविधान में जहां मूल अधिकार उसकी आत्मा है, नीति निर्देशक तत्व उसका शरीर है, संवैधानिक उपचारो का अधिकार उसे प्राण वायु प्रदान कर एक जीवन्त शरीर का रूप प्रदान कर बाबा अम्बेडकर के सपनो के देव तुल्य पुरूष के रूप में उसे प्रस्तुत करता है ।
डाॅ. अम्बेडकर के द्वारा भारत के संविधान में भारत के प्रभुत्व सम्पन्न लोकतान्त्रिक गणराज्य को राज्यों का संघ घोषित किया गया है । विभाजन के पश्चात सुदृढ केन्द्रयुक्त परिसंघ की स्थापना का उददेश्य राजनीतिक एंव प्रशासनिक दोनो ही रहा है । फिर भी संविधान को पूर्णरूपेण परिसंघात्मक नहीं बनाया जा सका ।
संविधान सभा के अनुसार संघ को परिसंघ कहना आवश्यक नहीं था । संविधान का प्रारूप प्रस्तुत करते हुए प्ररूप समिति के अध्यक्ष डाॅ. अम्बेडकर ने कहा था कि यद्यपि यह संविधान संरचना की दृष्टि से फेडरल हो सकता है, किन्तु कुछ निश्चित उददेश्यों से समिति ने इसे संघ कहा है । जैसा कि संविधान सभा में कहा गया था ये उददेश्य दो तथ्यों की ओर संकेत करते हैं-


अ- अमेरिकी संघवाद की भांति भारत का संघवाद संघ की इकाइयों के बीच परस्पर करार का परिणाम नहीं है ।
ब- राज्यों को स्वेच्छानुसार परिसंघ से पृथक होने का अधिकार नहीं दिया गया है ।
डाॅ. अम्बेडकर ने संघ शब्द का आशय इस प्रकार व्यक्त किया है-यद्यपि भारत को एक फेडरेशन से पृथक होने का अधिकार ही दिया गया है । फेडरेशन एक संघ है क्यों कि यह कभी समाप्त नहीं होगा । यद्यपि प्रशासन की सुविधा के लिए सम्पूर्ण देश और इसके निवासी एक ही स्त्रोत से उदभूत सर्वोच्च शक्ति के अधीन रहने वाले व्यक्ति है । राज्यों को इस संघ से पृथक होने का कोई अधिकार नहीं है । संघ का नाम इण्डिया अथवा भारत है । प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट इसके सदस्यों को राज्य कहा जाता है ।
व्यक्ति के बौद्धिक नैतिक अध्यात्मिक विकास के लिए भारत के संविधान के मूल अधिकार की घोषणा अध्याय 3 में की गई है जो भारत का मेगनाकार्टा कहा जाता है । इनका उदगम स्वंतत्रता का संघर्ष है और स्वाधीनता का वृक्ष भारत में विकसित होना इस आशय के साथ इन्हें शामिल किया गया है । उसमें मानव अधिकारों के आधार भूत ढांचा को मान्यता प्रदान की गई है ।
बहूसंख्यक, अल्मसंख्यक का शोषण न कर विधि का सुस्थापित शासन हो इसलिए इन्हें शामिल किया गया है ।इन्हें राज्य शक्ति के रूप में गारंटी के रूप में प्रदान किया गया है ।


हमारा देश सदियों से रूढी प्रथाओं, सामाजिक भेदभाव, असमान्ता के कारण सदियों से परतत्रं रहा है । इसलिए व्यक्ति को समता और समान अधिकार प्रदान किया गया है उसे विधि के समक्ष समता और समता का अधिकार दिया गया है । सभी नागरिकों के साथ विधि समानता व्यवहार कर उन्हें समान संरक्षण प्रदान करती है ताकि उनका जन्म, मूल वंश, जाति, वर्ग, विशेष के आधार पर कोई भेद भाव नहीं है ।

बाबा अम्बेडकर ने अपने जीवन काल में दलित वर्ग से संबंधित होने के कारण अन्य असमानताओं का सामना करना पडा था । इसके बावजूद भी उन्होने शिक्षा प्राप्त की और देश के संविधान निर्माण में महत्वूपर्ण भूमिका अदा की थी । इसी कारण संविधान में भारत के नागरिको के साथ वर्ग विभेद न हो उन्हें कार्य व्यापार, व्यवसाय, बोलने लिखने, की स्वतंत्रता धर्म, मूल वंश, लिंग, जाति, जन्म स्थान के आधार पर उनके साथ कोई विभेद न किया जाये । स्त्री और बच्चो का कोई शोषण न हो । कोई बाल विवाह, बहू विवाह, दहेज के प्रताडना से कोई प्रताडित न हो इसके लिए विशेष उपबंध संविधान में दिया गया है ।
सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछडे वर्गो के लिए विशेष उपबंधों संविधान में दिये गये है । अनुसूचित जाति जनजाति, पिछडे वर्ग के लिए जो सदियों से मुख्य धारा सेहटे हुए थे और सामाजिक दलित वर्ग के रूप के लिए जाने जाते थे उनके उत्थान के लिए विशेष प्रावधान बाबा अम्बेडकर के प्रयास से किये गये हैं । अस्पृश्ता का अंत किया गया था ।
स्वंतत्रता को जीवन मानते हुए वाक्त अभिव्यक्ति स्वतंत्रता सभा संघ भ्रमण आवास की स्ंवतत्रता भारत के स्वतंत्र नागरिकोे को प्रदान की गई थी। भारत की एकता और अखण्डता को युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाया गया था । व्यक्ति को प्राण देहिक स्वतंत्रता प्रदान कर सर्व श्रेष्ठ अधिकार प्रदान कर मानव को मानव होने का एहसास कराया गया है । ।
अवैध गिरफतारी निरोध से संरक्षण प्रदान किया गया है । शोषण के विरूद्ध मानव व्यापार, बलात्श्रम को प्रतिबंधित किया गया है और लोगो को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई । सांस्कृतिक शिक्षा संबधि अधिकार प्रदान किये गये है ।
अधिकारो का अस्तित्व उपचारो पर आधारित है । उपचारो के अभाव में अधिकार संभव नही है । यही कारण है कि डाॅ.अम्बेडकर के द्वारा सवैधानिक उपचारो के अधिकार पर अधिक जोर दिया गया है । डाॅ. अम्बेडकर के अनुसार यदि मुझसे पूछा जाये कि संविण्धान में कौन सा विशेष अनुच्छेद सबसे महत्वपूर्ण है जिसके बिना यह संविधान शून्य हो जाएगा तो मैं इसके सिवाय किसी दूसरे अनुच्छेद का नाम नहीं लूंगा । यह संविधान की आत्मा है ।


भारत के संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति निर्देशक तत्व लोक हित कारी राज्य समाज वादी समाज की स्थापना हेतु दिया गया है । कल्याणकारी राज्य के रूप में जनता के हित और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना राज्य का कर्तव्य माना गया है । डाॅ.अम्बेडकर ने इन्हें संविधान अनोखी विशेषताए बताया है । इनमें कल्याणकारी राज्य का लक्ष्य निहित है । डाॅ. अम्बेडकर ने संविधान निर्मात्री सभा में नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर्निहित उददेश्यों के बारे में स्पष्टीकरण करते हुए निम्नलिखित विचार व्यक्त किया था--
’’....................हमारा संविधान संसदीय प्रजातंत्र की स्थापना करता है । संसदीय प्रजातंत्र से तात्पर्य है -एक व्यक्ति एक वोट । हमारा यह भी तात्पर्य है कि प्रत्येक सरकार अपने प्रतिदिन के कार्य-कलापों में तथा एक विषय के अंत में, जब कि मतदाताओ और निर्वाचक-मण्डल की सरकार द्वारा किये गये कार्यो का मूल्यांकन करने का अवसर मिलता है, कसौटी पर कसी जायेगी । राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना का उददेश्य यह है कि हम कुछ निश्चित लोगों को यह अवसर न दें कि वे निरंकशवाद को कायम रख सकें । जब हमने राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना की है, तो हमारी यह भी इच्छा है कि आर्थिक लोकतंत्र का आदर्श भी स्थापित करें । प्रश्न यह है कि क्या हमारे पास कोई निश्चित तरीका है जिससे हम आार्थिक लोकतंत्र की स्थापना कर सकते हों? विभिन्न ऐसे तरीके है जिनमें लोगो का विश्वास है कि आर्थिक लोकतंत्र लाया जा सकता है । बहुत से लोग हैं जो व्यक्तिगत उत्कर्ष को सबसे अच्छा आर्थिक लोकतंत्र समझते हैं, और बहुत से लोग समाजवादी समाज की स्थापना को सबसे अच्छा आर्थिक लोकतंत्र मानते हैं । इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि आर्थिक लोकतंत्र लाने के विभिन्न तरीके हैं, हमने जो भाषा प्रयुक्त की है उमें जानबझकर नीति निदेशक तत्वों में ऐसी चीज रखी है जो निश्चित या अनम्य नहीं है । हमने इसलिए विविध तरीको र्से आिर्थक लोकतंत्र के आदर्श तक पहंुचने के लिए चिन्तनशील लोगो के लिए पर्याप्त स्थान छोडा है । इस संविधान की रचना में हमारे वस्तुतः दो उददेश्य है -1 राजनीतिक लोकतंत्र का रूप निर्धारित करना और 2- यह स्थापित करना कि हमारा आदर्श आर्थिक लोकतंत्र है और इसका भी विधान करना कि प्रत्येक सरकार जो भी सत्तामें हो आर्थिक लोक तंत्र लाने का प्रयास रेगी ।

देश की आजादी के बाद वर्ष 1947 में प्रथम नेहरू मंत्रिमण्डल में बाबा साहेब डा. अम्बेडकर कानून मंत्री बने तथा वर्ष 1948 में संविधान ड्ाफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में इन्होंने संविधान सभा में मसौदा प्रस्तुत किया और इनको भारत के संविधान निर्माता बनने का गौरव प्राप्त हुआ । इनके अथक प्रयासों के कारण ही इसी पवित्र संविधान के आधारपर यहां अनुसूचित जाति/जनजाति व अन्य पिछडे वर्गो के इन कमजोर तबके के लोगों को स्वाभिमान की जिन्दगी बसर करने के लिए विेशेष कानूनी सुविधाएं पहली बार नसीब हुई ।


साथ ही उन्होंने एक व्यक्ति-एक वोट, एक वोट की एक समान कीमत का चुनावी सिद्धांत लागू करके इस देश के तमाम कमजोर वर्गो के लोगों को राजनीति में भी समुचित भागीदारी का कनूनी अधिकार दिलाया । थोर्ट आफ पाकिस्तान जैसी महत्वपूर्ण गंथो एनिहिलेशन आफ कास्ट की रंचना ।


डाॅ. भीमराव अम्बेडकर एम.ए., पी.एच.डी, कोलम्बिया विश्वविद्यालय डी.एस.सी. लन्दन, एल.एल.डी कोलम्बिया वि.वि. डी.लिट उस्मानिया वि.वि., बार एट लाॅ लन्दन, पुत्र सूबेदार मेजर रामजी मालोजी व श्रीमती भीमा बाई तथा उनका विवाह रामाबाई के साथ हुआ था। जन्म दिनंाक-14 अप्रैल सन् 1891 जन्म स्थान महू छावनी जिला इन्दौर मध्य प्रदेश । परिनिर्वाण निधन 26 अलीपुर रोड नई दिल्ली में दिनांक-6 दिसम्बर सन् 1956 । डाॅ. अम्बेडकर ने अपने काफी मुश्किल भरे हालातो में शिक्षा प्राप्त करके यहां वर्ण व गैर बराबरी वाली सामाजिक व्रूवस्था के शिकार लोगो के हितो के लिए विभिन्न स्तर पर कडा संघर्ष किया और अनेको प्रयासो के जरिये उनमें अपने मौलिक अधिकारों के प्रति भावना भी जागृत की । साथ की इस व्यवस्था को बदलने के लिए भी काफी मेहनत व जद्दोजहद की । इनका समस्त जीवन न्याय, समानता व मानवाधिारों के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित एंव चिन्तन पूर्णतः मानवीय मूल्यों पर आधारित रहा है । जिसकी छवि आज के संविधान में दिखती है ।
हमारा देश सदियों सेेेेेेेेेेे व्याप्त वर्ण व जाति पर आधारित गैर-बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था का, जिन्दगी के हर पहलू में सबसे ज्यादा शिकार, यहां अनुसूचित जाति/जनजाति एंव अन्य पिछडे वर्गो के लोग रहे है और इन वर्गो में समय समय अनेको महान सन्त, गुरू व महापुरूष पेदा हुए, जिन्हों इस गैर-बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था को बदलने व समतामूलक समाज व्यवस्था को स्थापित करने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया तथा काफी कुर्बानियां भी दी है ।

भारत का संविधान समानता और न्याय के आदर्शो पर प्रतिष्ठित है । ऐसी समानता और न्याय की स्थापना का प्रयास राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक सभी क्षेत्रों में किया गया है । इसलिए संविधान धर्म, मूलवंश जाति या जन्मस्थान के आधार पर व्यक्तियों के किसी वर्ग में भेदभाग का प्रतिषेध करता है । इस आदर्श की प्राप्ति के उद्देश्यों से ही इसने धर्म के आधार पर साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व या विधान मण्डलों या सरकारी नौकरियों के लिए पदों के आरक्षण की प्रथा को समाप्त कर दिया है । हमारे संविधान निर्माताओं ने उक्त आदर्शो को मूर्त रूप देने के लिए देश के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछडे वर्गो के लिए समुचित उपबंध किया है, क्यों कि वे जानते थे कि जब तक इन वर्गो को प्रारंभ में सहायता न दी जायेगी, देश के विकास की गति अवरूद्ध हो जायेगी । प्रजातांत्रिक समानता के आदर्श केवल तभी साकार हा सकते है जब कि देश के समस्त वर्गो को एक स्तर पर लाया जाये । इसलिए हमारे संविधान में पिछडे वर्गो को देश के अन्य वर्गो के स्तर पर लाने के लिए कुछ अस्थायी प्रावधान है । और साथ ही साथ अल्पसंख्यक वर्गो के सांस्कृतिक या अन्य अधिकारों के संरक्षण के लिए कुछ अस्थायी प्रावधान की भ्ज्ञी व्यवस्था है ताकि बहुसंख्यक वर्ग अल्पसंख्यकों पर अत्याचार न कर सकें ।
जात पात का बीज नास को मूल मंत्र मानते हुए महान मानवता वादी गौतम बुद्ध ने जहां भारतीय इतिहास को सत्यपरक ज्ञान से सुशोभित यिा, वहीं अपने जीवन में सामाजिक विकृतियों से समझौता नहीं किया । उन्होंने अशिक्षित, शोषित एंव दुखी प्राणियों को उपदेश दिया कि -अत्तदीपोभव अर्थात् अपना प्रकाश स्वयं बनकर स्वंय उपर उठो और अपने और अपने मार्ग का अन्वेषण स्वयं करो ।

भारतीय संविधान, भारतीय मुद्रा, राष्ट्घ्वज में वर्तमान धम्म प्रवर्तन चक्र, अशोक लाट, सत्यमेव जयते इत्यादि बौद्ध धर्म की कला, संस्कृति, आचारण, धर्मनिष्ठा की मिसाल तथा बौद्ध धर्म के आधार शिल्प है । इस प्रकार, महान मानवतावादी गौतम बुद्ध ने सम्पूर्ण मानव समाज के लिए जो कल्याणकारी मार्ग दिया वह विश्वभर में हमेशा प्रासंगिक बना रहेगा । जो भी उस मार्ग पर चलता रहेगा वह हमेशा सुखी और प्रकाशनवान रहेगा ।

                                                             भारत का संविधान संघात्मक है । जिसमें सत्ता संसद में नीहित होती है और संसद जनता के प्रति उत्तरदायी होती है । डाॅ. अम्बेडकर ने सर्वप्रथम सरकार के संबंध में मत व्यक्त किया था कि भारत में अमेरिका के राष्ट्पति प्रणाली होनाचाहिए । जिसमें राष्ट्पति कार्यपालन में प्रधान होती हे और ब्रिटेन में राजा की तरह होता है । किन्तु वह कार्यपालिका का प्रमुख नहीं होता है । वह राष्ट् का प्रतिनिधि होता है जो शासन नहीं करता है । अमेरिका का राष्ट्पति जनता के प्रति उत्तदायी नहीं होता है । जबकि ब्रिटेन में जनता के प्रति उत्तरदायी होता है । जबकि हमारे भारत में इसके बीच की व्यवस्था रखी गई है और कार्यपालिका का विधायक प्रति उत्तरदायी बनाया गया है ।विधायक को संसद के लिएउत्तदायी बनाया गया है । संसद जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि के लिए उत्तदायी होता है । इस प्रकार जनता के प्रति राष्ट्पति उत्तरदायी होता है । इस व्यवस्था के कारण राष्ट् युद्ध बाहरी आक्रमण के समय एक हो जाता है और शांति व्यवस्था के समय राज्य में चुनी गई सरकारे अपना अपना कार्य करती है और जनता के प्रति उत्तरदायी होती है । इससे देश की एकता और अखण्डता बनी रहती है ।
हमारे यहां डाॅ. अम्बेडकर के द्वारा एकल नागरिकता है जिसमे मुख्य उददेश्य अखिल भारतीय सेवा में आम जनता का प्रतिनिधि चुना जाता है । इसी प्रकार एकीकृत न्यायव्यवस्था में जिसमें सर्वोच्चता प्रदान किया गया है जो आम आदमी को सरकारी नौकरी प्राप्त है उसके लिए अखिल भारतीय सेवा प्रारंभ की गई है और एकीकृत न्याय पालिका होने के कारण भारत राज्य क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले अपराध को उपचार करने को लागू करना संरक्षक आपराधिक उपचार प्रदान करना न्याय पालिका का उददेश्य है ।
बाबा अम्बेडकर का कहना था कि संविधान लचिला है । काफी मजबूत है । शांति के समय कठोर और अन्य दशा में नरम है । युद्ध के समय पूरा भारत देश एक होक कठिनाईयों का सामना करता है ं।
संविधान में शक्तियों का विभाजन किया गया है । न्यायपालिका , कार्यपालिका का अपना अपना कार्य है ।

संविधान में शक्तियों को विभाजन किया गया है। न्याय पालिका, कार्यपालिका का अपना अपनाकार्य है । संविधान को सर्वोच्चता प्रदान की गई है । लिखित संिवधान बनाया गया है । ताकि इसमें समय समय पर परिवर्तन किया जा सके । एक स्वतंत्र न्याय पालिका का गठन किया गया है । संसद जो लोक सभा राज्य सभा से मिलकर बनती है और वह सामूहिक रूप से जनता के लिए उत्तरदायी होती है।
संघ और राज्य के बीच शक्तियों काविभाजन संघात्मक संविधान का मूल तत्व है । इसका विभाजन संविधान के द्वारा किया गया है तथा केन्द्र और राज्य के बीच विवाद होने पर उच्चतम न्यायालय को यह कार्य विवाद हल करने का सौंपा गया है। इसलिए उच्चतम न्यायालय को संविधान का संरक्षक कहा जाता है । इसके साथ ही साथ यह उच्चतम न्यायालय नागरिकों को अल्प संख्कों के अधिकार काहित को भी ध्यान में रखा जाता है । इसलिए उसे सामाजिक क्रांति के संरक्षक के रूप में जाना जाता है।
केन्द्र की तरह राज्य में भी प्रशासन संशधात्मक है । राज्य कार्यपालिका का परिणाम राज्य पाल होता है जो कई परिष द की सलाह से कार्य करता है ।
विधान मण्डल विधानसभा राज्य सभा से मिलकर बनती है । इसके बारे में न्यायपालिका, उच्चतम न्यायालय और अधिनस्थ न्यायालय सेमिलकर गठित होता है । संसद सदस्यों को संसद के विशेषअधिकार प्रदान किये गये है। जिसमें बोलने की स्वतंत्रता दी गई है जो सरकार नागरिको से --- है एंवभाषण की स्वतंत्रता और कार्यवाही के प्रयोजन का भी अधिकार दिया गया है ।
प्रशासन संबंधी नीतियों को ----क्यां कि उनके क्रियांवयन लोक सभा करती है अतः राजनैतिक वैक्तिक दबाव से मुक्त होकर कार्य करे इसके लिए संवैधानिक संरक्षण के रूपमें लोकसेवा आयोग अखिल भारतीय सेवा गठित की गई है । अतः उनकी सेवा शर्तो से संबधित विवाद के निपटारे के लिए प्रशासनिक अधिकरण निर्मित किये गये हैं ।स्वतंत्र निष्पक्ष चुनाव हो इसके एि निर्वाचन आयेग बनाये गये हैं । भारतीय संविधान संकट के समय संघात्मक से एकात्मक रूप धारण कर लेता है ।
मान्टेस्क्यू की शक्ति पृथक करण सदस्य कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्पति में नीहित हैं । विधायक संसद में और न्यायपालिका सुप्रीमकोर्ट में नीहित है । कार्यपालिका को लोकसभा के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है । विधायक तथा कार्यपालिका मनमानी कार्य न करें इसके लिए न्यायपालिका को शक्ति प्रदान की गई है ।
भारत के संसदी सरकार की स्थापना की गई है जिसमें राष्ट्पति सवैधानिक प्रमुख होता है लेकिन--- शक्ति मंत्री में नीहित होती है जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है । मंत्री परिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है । मंत्री परिषद के सदस्य जनता के चुने प्रतिनिधि होते हैं ।
डाॅ. अम्बेडकर के द्वारा यदि मुझसे पूछा जाये कि यदि संविधान में कौन सी विशेष अनुच्छेद सबसे महत्वपूर्ण है तथा जिसके बिना संविधान सूना हो जायेगा तो सवैधानिक उपचारो के अधिकार का नाम लिया जायेगा । यह संविधान की आत्मा है । यह अधिकार में अस्तित्व और उपचारों पर आधारित है ।उपचार के अभाव में अधिकार शून्य है । वह संविधान की आधारभूत ढांचे का महत्वप प्रदान करता है उसमें संशोधन की अनुमति प्रदान नहीं की गई है ।
राज्य का कोईधर्म नहीं होगा उसके धर्म निर्पेक्षता रखी गई है । प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता दी गई है ।
भारतीय संविधान की प्रकृति के बारे में विधिशास्त्रियों में काफी मतभेद रहा है । संविधान निर्माताओं के अनुसार भारतीय संविधान एक संघात्मक संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डाॅ. अम्बेडकर ने कहा कि मेरे इसविचार से सभी सहमत है कि यद्यपि हमारे संविधान में ऐसे उपबंधों का समावेश है जो केन्द्र को ऐसी शक्ति प्रदान कर देते हैं जिनमें प्रान्तों की स्वतंत्रता समाप्त सीहो जाती है । फिर भी वह संघात्मक संविधान है ं इससे संविधान निर्माताओ का एकमत स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है किन्तु कुछ संविधानवेत्ताओ को भारतीय संविधान को संघात्मक मानने में आपत्ति है जिनमें सेप्रमुख हैं प्रोफेसर हियर और प्रोफेसर जेनिंग्स । कोई भी संविधान संघात्मक है या नहीं इसके लिए हमें यह जानना चाहिए कि उसके आवश्यक तत्व कया हैं? जिस संविधान में उक्त तत्व मौजूद होते हें उसे संघात्मक संविधान कहा जाता है ।
भारत का संविधान समानता ओर न्याय के आदर्शो पर प्रतिष्ठित है । ऐसे समानता और न्याय की स्थापना का प्रयास राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक सभी क्षेत्रों में किया गया है । इसलिए संविधान धर्म, मूलवंश जाति या जन्मस्थान के आधारपर व्यक्तियों के किसी वर्ग में भेदभाव का प्रतिषेध करता है ं इस आदर्श कीप्रा्िरप्त के उददेश्यों से ही इसने धर्म के आधार पर साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व या विधानमण्डलों या सरकारी नौकरियों के लिए पदो के आरक्षण कीप्रथा को समाप्त कर यिा है ।
हमारे संविधान निर्मातओं ने उक्त आदर्शो को मूर्त रूप देने के लिए देश के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछडे वर्गो के लिए समुचित उपबंध किया है क्यों कि वे जानते थे कि जब तक इन वर्गाे को प्रारंभ में सहायता न दी जायेगी देश के विकास की गति अवरूद्ध हो जायेगी ं प्रजातांत्रिक समानता के आदर्श केवल तभी साकार हो सकते हें जब कि देश के समस्त वर्गो को एक स्तर पर लाया जाये ं इसलिए हमारे संविधान में पिछडे वर्गो को देशके अय वर्गो के स्तर परलाने के लिए कुछ अस्थायीप्रावधान है और साथ ही साथ अल्पसंख्यक वर्गो के सांस्कृतिक याअन्य अधिकारों के संरक्षण के लिए कुछ अस्थायी प्रावधान की भी व्यवस्था है ताकि बहुसंख्यक वर्ग अल्पसंख्यों र अत्याचार न कर सकें ।
अनुच्छेद 46राज्य को जनता के दुर्बलतर और विशेषतया अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित आदिम जातियों के शिक्षा तथा आर्थिक हितों की विशेष सावधानी से उन्नति करने तथा सब प्रकारके शोषण से उनका संरक्षण करने का निदेश देता है ।
                                   संविधान के भाग 3 में भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संरक्षणके लिए अनेक उपबंध है । अनुच्छेद 14 भारत के प्रत्येक व्यक्ति को विधि के समक्ष समा औरविधियों के समान संरक्षण की गारंटी करता है अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति लिंग याजन्त स्थान के आधारपर सार्वजनिक स्थानों में प्रवेश पर राज्य द्वारा भेद भावकरने का प्रतिषेध करता है । अनुच्छे की र्को भी बात राज्य को सामाजिक औरशिक्षात्मक दृष्टि से पिछडे हुए वर्गो या अनुसूचति जातियों या अनुसूचित आदिम जातियों की उन्नति के लिए विशेष उपबंधकरने में बाधक न होगी । अनुच्छेद 16 सरकारी नौकरियों के लिए अवसर की समानता की गारंटी करता है और इसके संबंधमें धर्म, मूलवंश, जाति लिंग, उदभव, जन्मस्थान, निवास के आधारपर भेद भाव को वर्जित करता है । किन्तु राज्य उक्त वर्गो के व्यक्तियों के लिए यदि उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है, नियुक्तियों या पदों परआरक्षणका प्रावधान कर सकता है । अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का उन्मूलन करता है ं जो भारतीय समाज का एक महान कलंक था । अनुच्छेद 19-5 अनुसूचित आदिम जातियों के हितों की संरक्षा के एि इस अनुच्छेद के ख्ंाड घ,ड, और च में प्रदत्त मूल अधिकारों पर निर्बधन लगाता है ।

अनुच्छेद 29 से लेकर 30 तक में अल्पसंख्यकों की संस्कृति के संरक्षण के लिए उपबंध किया गया है । भारत में रहने वाले नागरिकों के किसी वर्ग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाये रख्ने का अधिकार प्राप्त है । सभी अल्पसंख्यक वर्गो को चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हो, अपनी रूचि को शिक्षा संस्थाओं की स्थापना का अधिकार होगा । शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी विद्यालय के विरूद्ध इस आधार पर विभेद न करेगा कि वह सिी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है ।

अनुच्छे 275 अनुसूचित आदिम जातियों के कल्याण हेतु राज्यों को केन्द्रीय सहायक अनुदान का उपबंध करता है । अनुच्छेद 325 के अनुसार निर्वाचन हेतु एक साधारण निर्वाचक नामावली होगी तथा केवल धर्म, मूलवंश, जाति लिंगख् के आधारपर कोई व्यक्ति किसी ऐसी नामावली में सम्मिलित किये जाने के लिए अपात्र नहीं होगा । अनुच्छेद 164 उडीसा, बिहार और मध्य प्रदेश राज्यों में आदिम अनुसूचित जातियों के कलयाणके लिए एक विशेष मंत्री का उपबंधकरता है । अनुच्छेद 342 तक में अनुसूचित जातियों अनुसूचितआदिमजातियेां , ऐंग्लो इंडियन्स और पिछडे वर्गो के लिए विशेष उपबंध किये गये है ं अनुच्छेद 347, 350, 350क, 350ख भाषायी अल्पसंख्यकों के संरक्षण की व्यवस्था करते हैं । अब हम उक्त सभी उपबंधों का संक्षेप में विवरण देंगे ।










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