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umeshgupta ke blog

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सामाजिक न्याय ayushigupta

सामाजिक न्याय सर्व प्रथम स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे सामने सबसे महत्वपूर्ण कार्य एक ऐसे संविधान की रचना करना था जिसके माध्यम से उन उददेश्यों को प्राप्त कर सके जिसके लिए हमने आजादी की लडाई लडी थी और लाखो लोगो की कुरबानी देकर स्वतंत्रता प्राप्त की थी । हमारा देश छोटी-छोटी रियासतो में बटंा हुआ था । स्वतंत्रता के बाद सभी राजा महाराज रियासत स्वतंत्र हो गई थी और उन्हें एकत्र करना महत्वपूर्ण उद्देश्य था। इसके लिए देश में एक संगठित कानून होना आवश्यक था । सर्व प्रथम संविधान निर्माण के लिए कैबिनेट-योजना के अंतर्गत नवम्बर 1946 को संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव किया गया । कुल 296 सदस्यों में से 211 सदस्य कांग्रेस के चुने गये और 73 मुस्लिम लीग के तथा शेष स्थान खाली रहे । संविधान सभा के प्रमुख सदस्य में जवाहरलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, सरकार पटेल, मौलाना आजाद, गोपाल स्वामी आयंगर, गोविन्द बल्लभ पन्त, अब्दुल गफफार खां, टी.टी.कृष्णामाचारी, अल्लादी कृष्णास्वामी अययर, हृदयनाथ कंुजरू, सर एच.एस. गौड़, के.टी.शाह, मसानी, आचार्य कृपालानी, डाॅ. अम्बेडकर आदि थे । संविधान बनाने के लिए जब संविधान सभा...

भारत का संविधान और समाजिक न्याय INDIAN CONSTITUTION AND SOCIAL JUSTICE & DR.AMBEDKAR ayushigupta

             भारत का संविधान और समाजिक न्याय         सामाजिक न्याय का आशय आम तौर पर समाज में लोगो के मध्य समता, एकता, मानव अधिकार, की स्थापना करना है तथा व्यक्ति की गरीमा को विशेष महत्व प्रदान करना है । यह मानव अधिकार और समानता की अवधारणाओं पर आधारित है और प्रगतिशील कराधन, आय, सम्पत्ति के पुनर्वितरण, के माध्यम से आर्थिक समतावाद लाना सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य हैं । भारतीय समाज में सदियों से सामाजिक न्याय की लडाई आम जनता और शासक तथा प्रशासक वर्ग के मध्य होती आई है । यही कारण हेै कि इसे हम कबीर की वाणी बुद्ध की शिक्षा, महावीर की दीक्षा, गांधी की अहिंसा, सांई की सीख, ईसा की रोशनी, नानक के संदेश में पाते हैं ।         सदियों से मानव सामाजिक न्याय को प्राप्त करने भटकता रहा है और इसी कारण दुनिया में कई युद्ध, क्रांति, बगावत, विद्रोह, हुये हैं जिसके कारण कई सत्ता परिवर्तन हुए हैं । जिन राज्यों और प्रशासकों ने सामाजिक न्याय के विरूद्ध कार्य किया उनकी सत्ता हमेशा क्रांतिकारियों के निशानों में...